पाकिस्तान का
रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक 'Crisis
off Leadership’ में लिखा हैv की, भारतीय सेना का एक अभिन्न अंग होते हुए भी, भारतीय सेना मराठा के शौर्य से अंजान ही रही क्योंकि…..’घर की मुर्गी दाल बराबर !’ भारतीय सेना को मराठा की वीरता से कभी सीधा वास्ता नही पड़ा था !
दुश्मनों को पड़ा था और उन्होंने इनकी शौर्य गाथाएं भी लिखी! स्वयं पाकिस्तानी
सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक 'Crisis of Leadership’ के प्रष्ट २५० पर, वे मराठा के साथ हुई अपनी १९७१ की मुठभेड़ पर लिखते हैं कि,...
हार का मुख्य कारण
हमारा मराठा से आमने सामने युद्ध करना “हमारी हार का मुख्य कारण था, हमारा मराठा से आमने सामने युद्ध करना! हम उनके आगे कुछ भी करने में असमर्थ
थे!मराठा सैनिक बहुत बहादुर हैं और उनमें शहीद होने का एक विशेष जज्बा, एक महत्वाकांक्षा है! वे अत्यंत बहादुरी से लड़ते हैं और उनमें सामर्थ्य
है कि अपने से कई गुना संख्या में अधिक सेना को भी वे परास्त कर सकते हैं!” वे आगे लिखते हैं की……..‘३दिसंबर १९७१ को हमने अपनी पूर्ण क्षमता
और दिलेरी के साथ अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर हुसैनीवाला के
समीप आक्रमण किया! हमारी इस ब्रिगेड में पाकिस्तान की लड़ाकू बलूच रेजिमेंट और जाट
रेजिमेंट भी थीं ! और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पाँव उखाड़ दिए और
उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया!उनकी महत्वपूर्ण सुरक्षा चौकियां अब
हमारे कब्ज़े में थीं! भारतीय सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थी और पाकिस्तानी
सेना अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ रही थी! हमारी सेना अब कौसरे -
हिंद पोस्ट के समीप पहुँच चुकी थी! भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां उस पोस्ट
की सुरक्षा के लिए तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक मराठा बटालियन से संबंधित थे!
एक छोटी सी गिनती वाली मराठा बटालियन ने लोहे की
दीवार बन कर हमारा रास्ता अवरुद्ध कर दिया ! उन्होंने हम पर भूखे शेरों की तरह और
बाज़ की तेजी से आक्रमण किया! ये सभी सैनिक मराठा थे! यहाँ एक आमने-सामने की, आर-पार की, सैनिक से सैनिक की लड़ाई हुई! इस आर-पार
की लड़ाई में मराठा सैनिक इतनी बेमिसाल
बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी
महत्वाकांक्षाएं, हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठीं, हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया ! हमारे सभी सपने चकना चूर हो गये!’
इस जंग में बलूच
रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलाब हुसैन शहादत को प्राप्त हुए थे! उनके साथ ही
मेजर मोहम्मद जईफ और कप्तान आरिफ अलीम भी अल्लाह को प्यारे हुए थे! उन अन्य
पाकिस्तानी सैनिकों की गिनती कर पाना मुश्किल था जो इस जंग में शहीद हुए ! हम
आश्चर्यचकित थे मुट्ठीभर मराठो के साहस और उनकी इस बेमिसाल बहादुरी पर! जब हमने इस
तीन मंजिला कंक्रीट की बनी पोस्ट पर कब्जा किया, तो मराठा इस की छत
पर चले गये, जम कर हमारा विरोध करते रहे हम से लोहा
लेते रहे! सारी रात वे हम पर फायरिंग करते रहे और सारी रात वे अपने उद्घोष, जयकारों से आकाश गुंजायमान करते रहे!
इन मराठा सैनिकों
ने अपना प्रतिरोध अगले दिन तक जारी रखा, जब तक कि पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने
इसे चारों और से नहीं घेर लिया और इस सुरक्षा पोस्ट को गोलों से न उड़ा डाला! वे
सभी मुट्ठी भर मराठा सैनिक इस जंग में हमारा मुकाबला करते हुए शहीद हो गये, परन्तु तभी अन्य मराठा सैनिकों ने तोपखाने की मदद से हमारे टैंकों को
नष्ट कर दिया! बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए, इन मराठा सैनिकों ने मोर्चे में अपनी बढ़त
कायम रखी और इस तरह हमारी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा! ‘…..अफ़सोस ! इन मुट्ठी भर मराठा सैनिकों ने हमारे इस महान विजय अभियान को
हार में बदल डाला, हमारे विश्वास और हौंसले को चकनाचूर करके
रख डाला!
ऐसा ही हमारे साथ
ढाका (बंगला-देश) में भी हुआ था! जस्सूर की लड़ाई में मराठा ने पाकिस्तानी सेना से
इतनी बहादुरी से प्रतिरोध किया कि हमारी रीढ़ ही तोड़ कर रख दी, हमारे पैर उखाड़ दिए ! यह हमारी हार का सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण कारण था
! मराठा का शहीदों के प्रति प्यार, और सुरक्षा के लिए मौत का उपहास तथा देश
के लिए सम्मान, उनकी विजय का एकमात्र कारण था
*जय शिवाजी जय भवानी *
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