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Friday, 28 November 2025

रूसी योद्धा "साइबेरियन सैनिकों" या "रूसी सेना" के रूप में जाने जाते हैं, जो कड़ाके की ठंड में लड़ने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। यक्रेन में भी मोर्चा संभाल रखा है। कितने खतरनाक होते हैं साइबेरियन सैनिक ? किस तरह माइनस पचास डिग्री में खुद को ढाल लेते हैं ? भारत कैसे फायदा उठा सकता है।

 

3. ❄️ साइबेरियन सैनिक (Siberian Soldiers)

"साइबेरियन सैनिक" कोई विशिष्ट विशेष इकाई नहीं हैं, बल्कि यह एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग उन रूसी सैनिकों के लिए किया जाता है जो साइबेरिया जैसे अत्यधिक ठंडे क्षेत्रों से आते हैं या वहाँ प्रशिक्षित होते हैं।

कितने खतरनाक होते हैं साइबेरियन सैनिक?

इन सैनिकों की मुख्य ख़तरनाक क्षमता अत्यधिक ठंड के माहौल में उनकी अद्वितीय परिचालन क्षमता है:

  • अजेय सहनशक्ति: ये सैनिक अत्यंत निम्न तापमान, बर्फ़ और तूफ़ान में भी लंबे समय तक प्रभावी ढंग से लड़ने की क्षमता रखते हैं, जबकि कम तापमान में प्रशिक्षित हुए सैनिकों के लिए यह नामुमकिन होता है।
  • स्थानीय ज्ञान और ट्रैकिंग: साइबेरियाई मूल के सैनिकों के पास बर्फीले और दुर्गम इलाकों में जीवित रहने, गश्त करने और दुश्मन को ट्रैक करने का गहरा ज्ञान होता है।
  • कम तापमान में हथियारों का संचालन: उन्हें ऐसे ठंडे वातावरण में अपने सैन्य उपकरणों और हथियारों के रखरखाव और संचालन में महारत हासिल होती है, जहाँ सामान्य रूप से मशीनें जाम हो सकती हैं।

किस तरह माइनस पचास डिग्री में खुद को ढाल लेते हैं?

इन सैनिकों को भीषण ठंड के लिए खास तरीके से तैयार किया जाता है:

  • शारीरिक अनुकूलन: कठोर प्रशिक्षण से शरीर को अत्यधिक ठंड के प्रति अनुकूलित किया जाता है। इसमें कोल्ड-वॉटर स्विमिंग (बर्फीले पानी में तैरना) और जानबूझकर हाइपोथर्मिया (जानलेवा ठंड) के किनारे तक ले जाने वाली कवायदें शामिल हो सकती हैं, जिससे शारीरिक सहनशक्ति बढ़ती है।
  • विशेष शीतकालीन गियर: ये बहु-स्तरित (multi-layered) कपड़ों, उन्नत थर्मल इन्सुलेशन और विशेष भोजन पर निर्भर करते हैं जो शरीर की गर्मी को बनाए रखने में मदद करता है।
  • मानसिक दृढ़ता: कठोर और जानलेवा ठंड में भी मिशन पर केंद्रित रहने के लिए तीव्र मानसिक ट्रेनिंग दी जाती है। साइबेरिया के मूल निवासियों में अक्सर पीढ़ी दर पीढ़ी प्राकृतिक रूप से यह अनुकूलन क्षमता मौजूद होती है।

भारत कैसे फायदा उठा सकता है?

भारत, जिसकी सेना हिमालय के उच्च पर्वतीय और बर्फीले क्षेत्रों (जैसे लद्दाख और सियाचिन) में तैनात है, इन सैनिकों के ज्ञान से बहुत लाभ उठा सकती है:

  • शीतकालीन युद्ध प्रशिक्षण आदान-प्रदान: भारत को रूस के साथ शीतकालीन युद्ध (Winter Warfare) और आर्कटिक परिचालन पर केंद्रित एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करना चाहिए।
  • ट्रेनिंग तकनीक: साइबेरियन सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जीवित रहने की तकनीकें (Survival Techniques), ठंड में नेविगेशन (Navigation) और गश्त के तरीकों को भारतीय सेना अपने उच्च ऊंचाई वाले युद्ध स्कूलों (High-Altitude Warfare School - HAWS) में शामिल कर सकती है।
  • विशेष उपकरण और लॉजिस्टिक्स: अत्यधिक ठंडी परिस्थितियों में इस्तेमाल किए जाने वाले रूसी विशेष उपकरणों (जैसे स्नोमोबाइल, थर्मल गियर) और लॉजिस्टिक्स प्रबंधन (Logistic Management) के तरीकों का अध्ययन और उपयोग करना।

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जी हाँ, यूक्रेन युद्ध में रूस के विशेष बलों, जिनमें स्पत्सनाज (Spetsnaz) और अल्फा ग्रुप (Alpha Group) जैसी इकाइयाँ शामिल हैं, का उपयोग व्यापक रूप से किया गया है।

चूँकि विशेष बल गुप्त अभियानों में काम करते हैं, उनके कार्यों का सटीक विवरण अक्सर गोपनीय रहता है। हालाँकि, उपलब्ध जानकारी और सैन्य विश्लेषण के आधार पर उनकी भूमिका इस प्रकार है:

1. 🗡️ स्पत्सनाज (Spetsnaz) की भूमिका

स्पत्सनाज, विशेष रूप से GRU (सैन्य खुफिया) के अधीन आने वाली इकाइयाँ, यूक्रेन युद्ध में अग्रिम पंक्ति में रही हैं।

  • प्रारंभिक घुसपैठ और टोही (Initial Infiltration and Reconnaissance): युद्ध की शुरुआत में, उनका उपयोग दुश्मन की रेखाओं के पीछे घुसपैठ करने, प्रमुख ठिकानों और यूक्रेनी नेतृत्व की निगरानी करने और रूसी सेना के बड़े आक्रमण से पहले महत्वपूर्ण जानकारी जुटाने के लिए किया गया।
  • तोड़फोड़ और व्यवधान (Sabotage and Disruption): स्पत्सनाज ने यूक्रेनी संचार, रसद (Logistics) मार्गों और सैन्य बुनियादी ढाँचे (Military Infrastructure) को निशाना बनाकर तोड़फोड़ के मिशन चलाए ताकि यूक्रेनी सेना का समन्वय (Coordination) टूट जाए।
  • लक्षित हमले (Targeted Strikes): उन्होंने उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों, जैसे कि यूक्रेनी कमांड पोस्ट, रडार साइट्स और वायु रक्षा प्रणालियों पर अचानक और सटीक हमले किए।
  • कीव पर प्रारंभिक हमला: युद्ध के शुरुआती दिनों में कीव के पास होस्टोमेल एयरपोर्ट (Hostomel Airport) पर रूसी पैराट्रूपर्स के शुरुआती हमलों में स्पत्सनाज की इकाइयों की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।

2. 🛡️ अल्फा ग्रुप (Alpha Group) की भूमिका

अल्फा ग्रुप FSB (फेडरल सिक्योरिटी सर्विस) के तहत आता है और यह मुख्य रूप से काउंटर-टेररिज्म और आंतरिक सुरक्षा पर केंद्रित है। हालाँकि, युद्ध के संदर्भ में उनकी भूमिका थोड़ी बदल जाती है:

  • सुरक्षा और स्थिरता अभियान (Security and Stabilization Operations): रूस द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्रों (जैसे डोनबास, खेरसॉन, ज़ापोरिज्जिया) में अल्फा ग्रुप और FSB की अन्य विशेष इकाइयों को स्थिरता मिशन के लिए तैनात किया गया है। इसमें विद्रोहियों (Partisans) का पता लगाना, जासूसी-विरोधी कार्रवाई करना और उच्च-मूल्य वाले यूक्रेनी लक्ष्यों को निष्क्रिय करना शामिल हो सकता है।
  • राजनीतिक लक्ष्य (Political Targets): कुछ रिपोर्टों के अनुसार, अल्फा ग्रुप को युद्ध के शुरुआती चरणों में यूक्रेनी सरकार के प्रमुख सदस्यों को लक्षित करने का काम सौंपा गया था, हालांकि ये मिशन सफल नहीं हो पाए।
  • यूक्रेन का दावा: यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यूक्रेनी सेना ने यह दावा किया है कि उन्होंने पोक्रोवस्क जैसे क्षेत्रों में रूस के विशेष बलों के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी है और उन्हें नुकसान पहुँचाया है।

3. ❄️ साइबेरियन सैनिकों का उपयोग

"साइबेरियन सैनिक" (कठोर मौसम में प्रशिक्षित सैनिक) भी इस युद्ध का हिस्सा हैं:

  • शीतकालीन संचालन में तैनाती: चूँकि रूस-यूक्रेन युद्ध में सर्दी के मौसम में भीषण ठंड रही है, इसलिए इन सैनिकों को उनकी कठोरता और अत्यधिक ठंडे मौसम में सैन्य उपकरणों को कुशलतापूर्वक संचालित करने की क्षमता के कारण तैनात किया गया है।
  • सहनशक्ति: डोनबास जैसे लंबे, घिसाव वाले युद्धक्षेत्रों में, इन सैनिकों की उच्च सहनशक्ति (High Endurance) और प्रतिकूल परिस्थितियों में टिके रहने की क्षमता को रूसी सेना के लिए एक महत्वपूर्ण लाभ माना जाता है।

संक्षेप में, रूस ने यूक्रेन में अपनी रणनीतिक और परिचालन सफलता सुनिश्चित करने के लिए स्पत्सनाज को टोही, तोड़फोड़ और प्रत्यक्ष कार्रवाई के लिए, जबकि अल्फा ग्रुप को सुरक्षा और उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों पर गुप्त कार्रवाई के लिए सक्रिय रूप से उपयोग किया है।

 

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